यह रचना मैंने 25-09-1995 को लिखी थी/
21-09-2095 को दिल्ली में एक चमत्कार हो गया था जब भगवान ग़णेश दूध पीने लगे थे.
विज्ञान और आस्था में एक बहस छिड़ गयी थी.
गणेश जी की दुग्ध महिमा
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दुग्ध चमत्कार देखिके, सगरे रह गए दंग
सन्त,महात्मा,ज्ञानी की, निन्द्रा हो गयी भंग
निंद्रा हो गयी भंग, यह कैसा गोरखधन्धा
मंहगा हुआ दूध, कल तक था जो मन्दा.
धरम करम के नाम पर, लूट सके तू लूट
लोग बनते बेवकूफ, ले पैसे जा फूट
ले पैसे जा फूट, कुछ लोगों का यह धन्धा
अन्धविश्वासी जनता, कौन डालेगा फंदा.
लग जा तू भी लैन मा, छकाई पिला दूध
अवश्य मिलबे तोको यहाँ, मूल सूद दर सूद
मूल सूद दर सूद, "तने"
लीला रचाई स
जिनमे थी न आस्था, वा में भी यो जागी स
लीला ‘ उसकी ‘कहे सब , मैं साइफन एक्शन
भावना जिसकी जैसी, जोड़े वह कनेक्शन
जोड़े वह कनेक्शन, अच्छा "तू" पाठ पढ़ायो
देख धर्म का नाश, गणेश दुग्धपान करायो
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सर्वाधिकार सुरक्षित/ सबरंग/ 2010/त्रिभवन कौल
Deepak Shukla 5:02am Mar 6
sateek vardan kiya aapne apne shbdon me!! us ghtna ka!! mai bhi hatprabh tha!! aur yakeen maniye maine apne hatho se doodh pilaya bhi tha!! ye wakai ek chmtkar tha!!
(Via kavitalok/FB)
Monnmani Antaryami 11:48pm Mar 5
ReplyDeletewah wah wah..kya baat...
(via kavitalok/FB)
Om Neerav 10:53pm Mar 5
ReplyDeleteधर्म की ओट में समाज को धगाने वालो से सचेत करती इस सुन्दर सार्थक रचना के लिए आपको बधाई !
(via kavitalok/FB)
Gaurav Kumar Arun 6:40pm Mar 5
ReplyDeleteसुन्दर रचना
(via kavitalok/FB)