Tuesday, 26 August 2014

मन

मन
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मन
कभी चंचल, कभी स्थिर
कल्पनाजनित भ्रमजाल उत्पन करता
आशा,निराशा,अपेक्षाओं और व्याकुलताओं का
मायाजाल बुनता हुआ, कभी
सत्य को मिथ्या और मिथ्या को सत्य में
परिवर्तित करता
यह मन
युद्धरत है निरंतर
विजय पाने को
दुष्टता और बुराई पर
मन
दौड़ लगाता है
अच्छाई और भलाई की
सीमा रेखा छूने को
एक कछुए की तरह
खरगोश रुपी दुश्विचारों को मात दे कर
मन
पथ डूंड लेता है अंतर्मन में झांक कर
सब पाप कर्मो का बहिष्कार कर
अन्तःत विजयी होता है एक दृढ निश्चयी
मन.
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सर्वाधिकार सुरक्षित/त्रिभवन कौल


6 comments:

  1. Ishaan Dafauti
    Thoughtfulness
    August 26 at 9:14pm • Like

    Deepak Shukla
    वाह!! मन की समस्त अवस्थाओं को क्या खूब उकेरा है बहुत ही कम शब्दों में आपने !! बहुत खूब !!
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  2. Mamta Ladiwal
    मन को अच्छे से विस्तृत रूप में शब्द दिए है आपने

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  3. रामकुमार चतुर्वेदी 9:09pm Sep 3
    वाह लाजवाब रचना

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  4. Gumnam Kavi 9:26pm Sep 3
    मन चंचल है परंतु दृढ एवं निश्चयी मन अंततः विजयी ही होता हैǃ अत्यंत सुंदर एवं सार्थक संदेशǃ हार्दिक बधाई आदरणीय कौल जीǃ

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  5. Ajay Kumar Chaudhary 9:51pm Sep 3
    .......... waah ati sundar !

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  6. Ramkishore Upadhyay 10:58pm Sep 3
    मन
    दौड़ लगाता है
    अच्छाई और भलाई की
    सीमा रेखा छूने को
    एक कछुए की तरह
    खरगोश रुपी दुश्विचारों को मात दे कर
    मन
    पथ डूंड लेता है अंतर्मन में झांक कर
    सब पाप कर्मो का बहिष्कार कर
    अन्तःत विजयी होता है एक दृढ निश्चयी
    मन. =================================बहुत सुन्दर रचना .मन -भावन .

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