Wednesday, 12 February 2014

व्यथा, अन्धकार की

व्यथा, अन्धकार की
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रात्रि का अन्धकार
मूक, बधिर, उपेक्षित
जीवन के आधारभूत मुल्यों को टटोलता
इंसानो के अंतर्मन को समझने के कोशिश करता
आँखे फाड़े, गहन वेदना के साथ
सन्नाटे को साथ लिए
करता है फ़रियाद, विधाता से,
"कि रात्रि के आँचल में क्यूँ रखा उसका वास ?
क्यूँ खामोशी उसकी प्रकृति को आयी रास ?
क्यूँ अमानवीय कर्मो का घटित होना
नहीं होता उसको भास ?
क्यूँ रात्रि उसकी सहभागी बन
झेलती है इतना त्रास ?
फलते-फूलते षड्यंत्रों का वह
चश्मदीद गवाह
अपने ही घर में
आस्तीन के सांपों को पालता
वीभत्स, निंदनीय,घृणित क्रियाओं का
सी सी टी वी के समान
अपने अंतरात्मा पर चित्रित करता
थक गया हूँ, हे भाग्यविधाता
कब समाप्त होगा यह संताप
कब मुक्ति मिलेगी इस त्रासदी से
अन्धकार को रात्रि से और रात्रि को अन्धकार से. "
शायद कभी नहीं
नियति निश्चित है
अन्धकार और रात्रि
सहगामी हैं,पूरक हैं, हमसफ़र हैं
चिरकाल तक, सम्पूर्ण प्रलय तक.////
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सर्वाधिकार सुरक्षित/त्रिभवन कौल 

8 comments:


  1. S.r. Pallav वाह ! अन्धकार भी अँधेरेपन के अहसास से खिन्न है । भले ही यह चिन्तन अन्धकार की प्रवृत्ति से भिन्न है किन्तु एक आत्मतोष प्रदान करता सा लगता है कि अँधेरे मेँ भी संवेदना है , खिन्नता है सी सी टी वी की तरह अनैतिक घटनाओँ का मात्र मूक दर्शक बने रहने पर । यह चिन्तन प्रतिपादित करता है कि अँधेरा भी चेतन है जीवन्त है जबकि इन्सान जीवित होते हुए भी आँखे मूँद कर मृतप्राय होने का प्रमाण देता है । बधाई त्रिभुवन कौल जी ! इस श्रेष्ठ सृजन के लिए तथा स्तवन आपकी समर्थ लेखनी का ।
    about an hour ago
    (via kavitalok/FB/12-02-2014)

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  2. Deepak Shukla Dard, ghutan, ashaay awsthaa aur bhi naa jane kitne striyochit vednaaon ko sametti aapki ye panktiya dil ko vedh kar nikal gayi......hay!! ye kaun sa samaj ham bana rahe hai apne!! liye!! bahut hi sochneey awstha hai ye!!
    (via facebook/12-02-2014)

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  3. Akanksha Chaudhary pretty scintillating!

    (via facebook)

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  4. Pranesh Nagri sundar.

    (via facebook)

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  5. Sanjay Tanha वीभत्स, निंदनीय,घृणित क्रियाओं का सी सी टी वी के समान अपने अंतरात्मा पर चित्रित करता थक गया हूँ, हे भाग्यविधाता कब समाप्त होगा यह संताप कब मुक्ति मिलेगी इस त्रासदी से।। waaaahhh क्या बात है

    (via facebook)

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  6. Nirmala Joshi रात्रि के अंधकार की वेदना को बहुत अनूठे ढंग से प्रस्तुत कर आपने अपनी लेखनी को चार चाँद लगा दिए हैं ।
    अद्भुद आपकी लेखनी ......" क्यूँ रात्रि उसकी सहगामी बन झेलती है इतना त्रास ?
    फ्स्लते फूलते षड्यंत्रों का वह
    चश्म्दीद गवाह
    अपने ही घर में।
    वाह ।।।।क्या बात है ।
    प्रणाम।
    (via facebook 13-02-2014)

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  7. Monnmani Antaryami behadh khubsoorat nazm..wh wah wah..
    (Via kavitalok/FB)

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  8. Om Neerav गुरु गंभीर चिंतन को बहुत सटीकता से और सहजता से शब्दायित किया है आपने ! वाह वाह ! क्या खूब ! अभिनन्दन आपकी समर्थ लेखनी का !
    (via kavitalok/FB)

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