एक
सैनिक की अभिलाषा
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जन्मभूमि
मेरी
प्रिये
मांगती, मेरा बलिदान
रो
न प्रिये, यश है इसमें
लक्ष्य
एक महान .
अर्पण
हों गर प्राण मेरे
आंसू
बहाना तू नहीं
धैर्य
धरना सोच करके
तू
अकेली ही नहीं
लाखों
चलें हैं इसी पथ पर
करना
सबों को एक ही काम
रो
न प्रिये, यश है इसमें
लक्ष्य
एक महान .
तेरे
पति को आज
माँ
भारती ने पुकारा है
रगों में बहते खून को
शत्रुओं
ने ललकारा है
मस्तिष्क
भारत का
कभी
झुकने नहीं दूंगा
नीच
बैरियों को आगे
बढ़ने
नहीं दूंगा
सोच
न कर अब प्रिये
कर
दे आज पति का दान
रो
न प्रिये, यश है इसमें
लक्ष्य
एक महान .
हों
गया शहीद जो में
कर्तव्य
न अपना भूलना
नर्स
बनके देश की
मौत
से तू जूझना
आएंगे
हजारों पास तेरे
सहायता
पाने को
उत्कंठा
होगी उनमे
लाम
पर फिरसे जाने को
हर
बूँद रक्त की दे
फूंकना
तुम उनमे प्राण
रो
न प्रिये , यश है इसमें
लक्ष्य
एक महान .
देश
के दुश्मनो से लड़ूंगा मैं
दूर
कंही लाम पर
लड़ना
पड़ेगा मुसीबतों से
तुमको
अपने धाम पर
तपती
हुई आग में
चमकना
सोने की तरह
घनघोर
बादलों में
निखरना
सूर्य की तरह
एक
सैनिक की हों वीर पत्नी
हों
सभी को ऐसा भान
रो
न प्रिये, यश है इसमें
आदर्श
एक महान .
जन्मभूमि
मेरी मांगती मेरे बलिदान
रो
न प्रिये, यश है इसमें
लक्ष्य
एक महारन.
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सर्वाधिकार
सुरक्षित/ त्रिभवन क़ौल
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