Monday, 13 January 2014

मन

My poem, a part of the anthology 'Lamhe' brought out by Poets Corner Group during Delhi Poetry Festival (09-12/01/2014)


मन
-----
मन
कभी चंचल, कभी स्थिर
कल्पनाजनित भ्रमजाल उत्पन करता
आशा,निराशा,अपेक्षाओं और व्याकुलताओं का
मायाजाल बुनता हुआ, कभी
सत्य को मिथ्या और मिथ्या को सत्य में
परिवर्तित करता
यह मन
युद्धरत है निरंतर
विजय पाने को
दुष्टता और बुराई पर
मन
दौड़ लगाता है
अच्छाई और भलाई की
सीमा रेखा छूने को
एक कछुए की तरह
खरगोश रुपी दुश्विचारों को मात दे कर
मन
पथ डूंड लेता है अंतर्मन में झांक कर
सब पाप कर्मो का बहिष्कार कर
अन्तःत विजयी होता है एक दृढ निश्चयी
मन.
--------------------------------------------
सर्वाधिकार सुरक्षित/त्रिभवन कौल


6 comments:

  1. Shobham Jan 15
    Dear Tk JI!
    profound thoughts. all the colors and nuances of "man "
    Gaagar mein saagar.
    man maange more .

    (via verdurez.com)

    ReplyDelete
  2. Monday 8:22pm
    Himandri S
    Kaul sir, loved your hindi poetry.. God bless you.

    (via facebook message)

    ReplyDelete
  3. Hasmukh Mehta
    bahut khubsurat... maine turant hi aapki shani me ek or bana liyaa....अन्तःत विजयी होता है एक दृढ निश्चयी
    मन.
    मन ही तो है जुड़ा हुआ
    तन के साथ लगा हुआ
    नैया को पार लगाता हुआ
    निरंतर चलता प्यार को बांटता हुआ।
    January 14 at 2:52pm •
    (Via facebook)

    ReplyDelete
  4. Nirmala Joshi
    बहुत ही उत्कृष्ट रघना ......वास्तव में मन के हरे हार है मन के जीते जीत ! इस उत्कृष्ट रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई !
    January 14 at 8:05pm •
    (Via facebook)

    ReplyDelete
  5. मन की यही दृढता और नीर क्षीर विवेक हमें उत्तरोत्तर और परिष्कृत करता जाता है और कठिन परिस्थितियों में हमें सही निर्णय लेने के लिए प्रेरित भी करता है ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  6. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत!, बहुत सुंदर प्रस्तुति !

    ReplyDelete