चिंता
निवारक (लघुतम कथा)
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एक
मानवी थी। एक मानव था। एक प्रेयसी बनी दूसरा
प्रेमी बना। प्रेम भरे विलक्षण से संसार में
एक दुसरे को समन्वेषण करते हुए वह दोनों रंगीन सपनो के बागीचे में विचरण करने लगे। प्रेयसी से पत्नी और प्रेमी से पति बनने तक का काल
उन दोनों के लिए सबसे सुखद और मधुमासीय रहा। इसके बाद का काल दोनों के लिए तो अनिश्चित
काल की परिभाषा को ही सार्थक करने लगा । कब , क्या, कैसे , क्यों , कहाँ , कौन इन सब प्रश्नो
की सुरंगों में उत्तर ढूँढ़ते , ग्रहस्थी के
भवँर से दोनो झूझते रहे। प्रेम
-नफरत, आशा -निराशा, विश्वास -अविश्वास, दुःख -सुख के घेरों से
सफलतापूर्वक बाहर निकल आने को आतुर दोनों लेखन की दुनिया में प्रवेश कर गए। लेखन, एक सक्षम चिंता निवारक राम बाण।
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कौल